ग्रेटर नोएडा में रहने वाले किसानों के लिए एक बड़ी राहत की खबर सामने आई है। ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने आबादी लीजबैक से जुड़े मामलों को सुलझाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, और इससे 41 गांवों के किसानों को सीधा फायदा होने वाला है। 20 मार्च 2025 को इसकी घोषणा हुई, और अथॉरिटी का कहना है कि 14 अप्रैल से गांव-गांव में कैंप लगाकर इन मामलों को निपटाया जाएगा।
अगर आप ग्रेटर नोएडा के इन गांवों से हैं या वहां के किसानों की मुश्किलों को समझते हैं, तो यह खबर आपके लिए किसी खुशखबरी से कम नहीं है। आइए, इस पूरी कहानी को आसान और दोस्ताना अंदाज में समझते हैं और जानते हैं कि क्या खास है इस पहल में!
किसानों की लंबी लड़ाई को मिलेगी राहत
ग्रेटर नोएडा के किसान लंबे वक्त से अपनी जमीन से जुड़े मसलों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं। जमीन अधिग्रहण के बाद उन्हें अपनी आबादी की जमीन वापस चाहिए, छह फीसदी विकसित भूखंड का हक चाहिए, और इसके अलावा मुआवजे में भी बढ़ोतरी की मांग रही है। इन मांगों को लेकर कई बार आंदोलन भी हुए। लेकिन अब ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने इन समस्याओं को हल करने का बीड़ा उठाया है। अथॉरिटी के एसीईओ सौम्य श्रीवास्तव ने बताया कि इस नई पहल से 41 गांवों के किसानों को राहत मिलेगी।
14 अप्रैल से शुरू होने वाले कैंपों में हर गांव के मामले अलग-अलग सुने जाएंगे। इसके लिए एक रोस्टर भी तैयार कर लिया गया है, ताकि कोई भी किसान छूट न जाए। अथॉरिटी का प्लान है कि इन सुनवाई के बाद जो भी प्रस्ताव तैयार होंगे, उन्हें बोर्ड मीटिंग में रखा जाएगा। बोर्ड की हरी झंडी मिलते ही लीजबैक की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। यानी, किसानों को उनकी जमीन का हक जल्द ही मिल सकता है।
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आबादी लीजबैक क्या है? आसान भाषा में समझें
अब सवाल यह है कि आबादी लीजबैक आखिर है क्या? इसे समझना बहुत आसान है। जब ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने किसानों की जमीन अधिग्रहण की, तो उसमें कुछ ऐसी जमीनें भी शामिल थीं, जिन पर किसानों का दावा था कि वह उनकी आबादी की जमीन है। यानी, वह जमीन जहां उनका घर बना हुआ है, खेती होती है, या कोई दूसरा निर्माण है। लीजबैक का मतलब है कि ऐसी जमीन को वापस किसानों के नाम पर दर्ज करना। इसके लिए किसान को मुआवजा राशि जमा करनी पड़ती है, और फिर वह जमीन फिर से उनकी हो जाती है।
हर गांव में ऐसे कई मामले हैं, जो सालों से अटके पड़े थे। लेकिन अब अथॉरिटी ने इनको सुलझाने की ठान ली है। 854 नए मामलों को निपटाने की तैयारी चल रही है, और यह किसानों के लिए एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।
अभी तक 371 किसानों को मिल चुका है फायदा
यह कोई पहली बार नहीं है कि अथॉरिटी ने लीजबैक पर काम किया हो। इससे पहले भी कई किसानों को इसका लाभ मिल चुका है। अथॉरिटी के सीईओ एनजी रवि कुमार ने बताया कि 2010 के शासनादेश के तहत 1451 लीजबैक मामलों को मंजूरी मिली थी। इनमें से अब तक 371 किसानों की जमीन उनके नाम पर दर्ज की जा चुकी है। यह दिखाता है कि अथॉरिटी इस दिशा में गंभीर है और अब 854 नए मामलों को लेकर भी तेजी से काम शुरू कर दिया गया है।
सीईओ का कहना है कि किसानों की समस्याओं को हल करना उनकी प्राथमिकता है। इस साल ज्यादा से ज्यादा मामलों को निपटाने का लक्ष्य रखा गया है, ताकि किसानों को लंबे इंतजार से छुटकारा मिले।
14 अप्रैल से शुरू होगी सुनवाई: कैसे होगा काम?

अथॉरिटी के विशेष कार्याधिकारी गिरीश कुमार झा ने बताया कि 41 गांवों के लिए एक खास रोस्टर तैयार किया गया है। 14 अप्रैल से शुरू होने वाले इन कैंपों में हर गांव के किसानों की सुनवाई होगी। यह देखा जाएगा कि किसान का दावा कितना सही है। हर मामले की पूरी जांच होगी, और इसके बाद एक विस्तृत रिपोर्ट बनाई जाएगी। यह रिपोर्ट बोर्ड मीटिंग में पेश होगी, और बोर्ड की मंजूरी के बाद लीजबैक की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
यह प्रक्रिया इसलिए खास है क्योंकि यह गांव-गांव जाकर किसानों की बात सुनने का मौका देती है। इससे न सिर्फ समय बचेगा, बल्कि किसानों को अपनी बात रखने का पूरा मौका भी मिलेगा।
छह फीसदी भूखंड का भी होगा लाभ
लीजबैक के अलावा, अथॉरिटी छह फीसदी विकसित भूखंड देने की योजना पर भी काम कर रही है। इसके लिए भूलेख विभाग ने 78 गांवों में से 60 गांवों में कैंप लगा लिए हैं। अब तक 42 गांवों के 3015 किसानों की पात्रता तय की जा चुकी है, और उनकी सूची भी जारी हो चुकी है। बाकी 1132 किसानों की सूची भी इस महीने के अंत तक प्रकाशित कर दी जाएगी।
यह भूखंड उन किसानों को दिए जाएंगे, जिनकी जमीन अधिग्रहण में गई थी। यह एक तरह से उनकी मेहनत और हक का सम्मान है, जो उन्हें लंबे संघर्ष के बाद मिल रहा है।
अथॉरिटी का मिशन: ज्यादा से ज्यादा समस्याएं सुलझाना
एसीईओ सौम्य श्रीवास्तव का कहना है कि अथॉरिटी का पूरा ध्यान किसानों की परेशानियों को दूर करने पर है। चाहे वह आबादी लीजबैक हो, छह फीसदी भूखंड का आवंटन हो, या शिफ्टिंग से जुड़े मसले—सबको प्राथमिकता के साथ निपटाया जा रहा है। इस साल का लक्ष्य है कि जितना हो सके, उतने मामलों को हल कर दिया जाए।
854 नए लीजबैक मामलों के लिए रोस्टर तैयार है, और 14 अप्रैल से सुनवाई शुरू होगी। सुनवाई के बाद बोर्ड की मंजूरी मिलते ही प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। यह कदम न सिर्फ किसानों के लिए राहत लेकर आएगा, बल्कि अथॉरिटी और किसानों के बीच भरोसा भी बढ़ाएगा।
क्यों खास है यह पहल?
ग्रेटर नोएडा के किसानों के लिए यह पहल इसलिए खास है क्योंकि यह उनकी सालों पुरानी मांगों को पूरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। जमीन अधिग्रहण के बाद कई किसानों को लगा था कि उनका हक छिन गया है। लेकिन अब अथॉरिटी के इस प्रयास से उन्हें अपनी जमीन और सम्मान दोनों वापस मिलने की उम्मीद जगी है।
41 गांवों के 854 मामले और 1132 किसानों को छह फीसदी भूखंड का लाभ—यह आंकड़े छोटे नहीं हैं। यह दिखाता है कि अथॉरिटी इस बार बड़े पैमाने पर काम करने को तैयार है। गांव-गांव कैंप लगाने की योजना से यह भी साफ है कि किसानों की सुविधा का पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
आप क्या सोचते हैं?
अगर आप ग्रेटर नोएडा के इन गांवों से हैं या वहां के किसानों की मुश्किलों से वाकिफ हैं, तो यह खबर आपके लिए उम्मीद की किरण हो सकती है। 14 अप्रैल से शुरू होने वाली यह प्रक्रिया न सिर्फ किसानों को राहत देगी, बल्कि उनकी जिंदगी में एक नई शुरुआत भी ला सकती है।
तो, क्या आपको लगता है कि यह कदम किसानों की सभी समस्याओं का हल बन पाएगा? या फिर अभी और इंतजार करना होगा? अपनी राय हमारे साथ जरूर शेयर करें। और हाँ, अगर आपके आसपास कोई ऐसा किसान है, जिसे इस खबर की जरूरत है, तो इसे उनके साथ शेयर करना न भूलें!
